Ganesh Ji ki Kahani दोस्तों, बचपन में हम सब ने दादी, नानी से अनेको कहानियां सुनी है। जिसमें से धार्मिक कहानियाँ (कुबेर के अहंकार और गणेश जी की कहानी) एक ऐसी कहानी (Hindi Kahani) थी, जो लगभग सभी को पसंद आती थी।
तो यहां हम आपको वहीं Ganesh ji ki Katha (कुबेर के अहंकार और गणेश जी की कथा) बताने वाले है। तो इस Story of Ganesh ji and Kubera को अंत तक जरूर पढ़ें।
कुबेर और गणेश जी की कहानी – Kuber Aur Ganesh Ji Ki Kahani
वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी की धन कभी भी अकेला नहीं आता, वो अपने साथ घमंड, लालच, अभिमान और अहंकार को साथ ले ही आता हैं, और ऐसे में यदि आपके पास कभी ना खत्म होने वाला धन हो तो आप सातवें आसमान पर तो उड़ेंगे ही। ऐसा ही कुछ धन के देवता कुबेर जी के साथ भी हो रहा था, उन्हें अपने धन और वैभव के प्रति इतना अहंकार आ गया था कि, अब वो अपने सामने सबको नीचे ही मानने लगे थे और इसी घमंड वश उन्होंने एक दावत का आयोजन कर लीया था।
जिसमें उन्होंने कई प्रकार के भोजन और पकवानों का बंदोबस्त किया था, यह बात सारे देवलोक में फैल गई और हर कोई इस दावत का हिस्सा बनने के लिए बेताब था।
कुबेर जी, अहंकार में आकर निमंत्रण देने कैलाश चले गए और शिव जी को दावत में भुलाने लगे और कहने लगे प्रभु, आप तो सदैव ही इस बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर रहते हैं, आप मेरी दावत में आइए, आपको बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। शिव जी ने कुबेर की मन की बात जान ली थी, उन्हें पता था कि कुबेर अहंकार में आकर उन्हें निमंत्रण देने आए हैं।
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शिव जी ने कुबेर से कहा की, वे तो कैलाश छोड़कर नहीं आ सकते, इसलिए वे अपने पुत्र गणेश को दावत में भेजेंगे, कुबेर भी राजी हो गए, और गणेश जी को अपने साथ महल ले आए।
महल में आने के बाद, गणेश जी के सामने कई तरह के पकवान, मिष्ठान, फल, आदि को पेश किया गया और गणेश जी इसे देखकर काफी प्रसन्न हो गए, पर उन्होंने ये सब पलक झपकते ही खा लिया, इसलिए कुबेर जी को, भोजन और पकवान, दूसरा भी मंगवाना पड़ा। गणेश जी पकवान को ऐसे खत्म कर रहे थे, जैसे घड़ी की सुई चलती है, कुबेर जी की रसोई के सारे पकवान खत्म हो गए, इसलिए उन्होंने अब नगर के जितने भी पकवान थे वो मंगवाकर गणेश जी के सामने दे दिए, पर गणेश जी की भूख अब भी शांत होने का नाम नहीं ले रही थी।
अब तो सारे राज्य का अन्न भी खत्म हो चुका था, अब कुबेर जी के पास पेश करने के लिए कुछ नहीं बचा था, गणेश जी ने कुबेर से और भोजन मांगा, इस पर कुबेर जी ने कहा, “अब तो कुछ भी शेष नहीं बचा, अब आपको क्या पेश करूं, गणेश महाराज?”
गणेश जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने कहा की, मैं आपका अतिथि हूँ मेरा पेट भरना आपका कर्त्तव्य है, इसलिए यदि आप मुझे भोजन नहीं देंगे तो, पहले मैं ये महल को खाऊंगा और फिर आपको,इतना सुनते ही कुबेर जी के पसीने छूटने लगे, गणेश ने, अब खाली बर्तनों को खाना शुरू किया था, इस पर कुबेर जी अत्यंत भयभीत हो गए, और उलटे पैर शिव जी के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगने लगे।
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कुबेर जी शिव जी से शमा मांगते हुए कहते हैं कि, मुझे माफ़ कर दीजिये प्रभु मैं अज्ञान और अहंकार वश आपको निमंतरण देने चला आया था। आप मुझे माफ़ करें और मेरी सहायता करें, नहीं तो गणेश जी सब कुछ नष्ट कर देंगे।
उस वक्त माता पार्वती ने कुबेर जी को एक पात्र खीर दी और कहा ये खीर को गणेश को खिला देना, कुबेर जी सोचने लगे की इतने पकवान गणेश जी की भूख शांत नहीं कर पाए, ये छोटा सा खीर का पात्र कैसे काम करेगा? पर माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए वो उस खीर का पात्र गणेश जी के पास ले आए और उनके सामने रखकर कहा कि, “गणेश महाराज, अब यही हैं बचा हैं, खीर का पात्र, इसे ग्रहण कर लीजिए।”
गणेश जी ने जैसे ही उस खीर को खाया, उनकी भूख शांत हो गई और वे तृप्त हो गए और कहने लगे की हाँ, अब मेरी भूख शांत हो गई। उस वक्त कुबेर जी को अहसास हुआ कि प्रेम से भरा एक प्याला भी अहंकार से भरे पकवानों से कई गुना अधिक स्वादिष्ट होता है।
कुबेर जी के सांसों में अब साँस आई, गणेश जी भी मन ही मन मुस्कराने लगे, और कहा की, “कल मैं फिरसे आ जाऊं कुबेर जी, आपके पास भोजन करने??” यह सुनते ही कुबेर जी, हक्के बक्के रह गए, उन्हें ऐसा देखकर गणेश जी मुस्कराने लगे और कहा की, “जब भी आपकी इच्छा हो, आप भुला लीजिएगा, अभी हम चलते हैं।”
तो ऐसे हैं हमारे प्रिय गणेश जी, कुबेर जी का अहंकार भी तोड़ लिया और स्वादिष्ट पकवानों को भी खा लिया, तो बोलो गणपति बाप्पा मोरिया।