Hariyali Teej Katha – हरियाली तीज की कथा

दोस्तों इस लेख में हम आपको हरियाली तीज की कथा (Hariyali Teej Katha) बताने वाले है। दोस्तों, हरियाली तीज (Hariyali Teej) का व्रत माता पार्वती के समर्पण और त्याग का प्रतीक माना जाता है, कहते हैं शिव जी को पाने के लिए ये व्रत सबसे पहले माँ पार्वती ने ही रखा था और उस दिन से हर महिला सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ये व्रत रखती हैं।

कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से आपको मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, ऐसा क्यों है? आइए जानते हैं इस (Hariyali Teej) व्रत की पौराणिक कहानी को।

Hariyali Teej Katha

हरियाली तीज की कथा – Hariyali Teej Katha

महादेव की पहली पत्नी जो उनकी शक्ति भी थी, उन्होंने दक्ष पुत्री माता सती के रूप में जन्म लिया था, किन्तु अपने पिता दक्ष द्वारा महादेव के अपमान के कारण उन्होंने खुद को भसम  कर दिया था। जिस वजह से महादेव वियोग में चले गए थे, और गौर तपस्या में लीन हो गए थे, किन्तु महादेव की शक्ति ने फिर से एक बार उनसे मिलने के लिए पर्वत राज की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया।

वो बाल्यकाल से ही महादेव को अपना आराध्य मानती थी, और उनसे विवाह करना चाहती थी किन्तु उनके पिता को इस बात का पता नहीं था।

माता पार्वती जैसे ही युवा अवस्था में आयी, तब से ही उन्होंने महादेव को पाने के लिए गौर तपस्या करना आरंभ कर दिया था। वो कई-कई दिनों तक तपस्या में लीन रहती बिना अन्न और जल ग्रहण किए बैठी रहती। इसके देखकर उनके पिता पर्वत राज अब व्याकुल हो उठे थे, उन्हें अपनी बेटी का इस प्रकार कष्ट सहता देखकर अच्छा नहीं लगा।

इसलिए जब एक बार नारद मुनि उनके राज महल में पहुंचे, तो उन्होंने अपनी बेटी पार्वती का विवाह श्री हरि (विष्णु) से करने का प्रस्ताव नारद जी के सामने रख दिया। नारद जी ने यह प्रस्ताव विष्णु जी के सामने रखा, तब विष्णु जी ने विवाह के लिए हां कह दी, किन्तु उन्हें यह ज्ञात था कि पार्वती ही महादेव की शक्ति हैं, उन्होंने हां इसलिए कहा कि उन्हें  लगा  की पार्वती से मेरे विवाह की बात सुनकर शायद शिव जी अपनी तपस्या से बाहर आ जाएं।

किन्तु शिव जी अपनी तपस्या से बाहर नहीं आए, पर यह बात सुनकर पार्वती व्याकुल हो उठी, क्योंकि वह तो शिव जी से विवाह करना चाहती थी। पार्वती ने जब यह बात अपनी सहेली से कही, तो उसकी सहेली ने उन्हें एक ऐसी गुफा के बारे में बताया जिसे पर्वत राज भी ढूंढ नहीं सकते थे।

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पार्वती बिना पर्वत राज को बताए, उस गुफा में तपस्या के लिए चली गई, उन्होंने अन्न और जल का त्याग करके शिव जी को पाने के लिए गौर तपस्या की, और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें वरदान देने का निर्णय किया। शिव जी को अपने वर के रूप में पाने के बाद, वह अपने पिता के पास गई और पूरी बात उन्हें बताई, पर्वत राज ने भी खुशी-खुशी इस बात को स्वीकार किया, और माता पार्वती और महादेव का विवाह बड़े धूमधाम से करवाया।

उस दिन से ही, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत रखने से माँ पार्वती के आशीर्वाद से मनचाहे वर की प्राप्ति की जाती है। इस दिन, स्त्रियाँ माँ गौरी की पूजा-अर्चना करती हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक पर्व है और इसे विशेष भक्ति और आदर के साथ मनाया जाता है।

यह व्रत स्त्रियों के लिए खुशियों और सौभाग्य की प्राप्ति की कामना के रूप में महत्वपूर्ण है और उन्हें इस विशेष दिन वृत करने से मनचाहे फल की प्राप्ति भी होती हैं।

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