कर भला तो हो भला (प्रेरक कहानी) – Kar Bhala To Ho Bhala

Kar Bhala to Ho Bhala: बचपन में हम सब ने दादी, नानी से अनेको कहानियां सुनी है। जिसमें से प्रेरक कहानी (कर भला तो हो भला की कहानी) Kar Bhala To Ho Bhala एक ऐसी कहानी थी, जो लगभग सभी को पसंद आती थी।

Kar Bhala To Ho Bhala Story
Kar Bhala To Ho Bhala

दोस्तों, आप सबने ये कहावत तो जरूर सुनी होगी कि कर भला तो हो भला। मतलब अगर आप आज किसी के साथ अच्छा करते हैं, तो कल आपके साथ भी अच्छा होगा। लेकिन दोस्तों इस संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ऐसा नहीं मानते।

तो यहां हम आपको वहीं Kar Bhala to Ho Bhala Story in Hindi (कर भला तो हो भला कहानी) बताने वाले है। तो इस kar bhala ho bhala kahani को अंत तक जरूर पढ़ें।

कर भला तो हो भला – Kar Bhala To Ho Bhala Story

आज से बहुत साल पहले की बात है,एक नगर में दो भाई रहते थे रामू और दीनू। बड़ा भाई रामू बहुत आमिर था, लेकिन कभी भी नेक काम नहीं करता था। वहीं छोटा भाई दीनू एक नेक आदमी था,लेकिन बिचारा बहुत गरीब था। एक दिन दोनों भाइयों में किसी बात को लेकर बहस छिड़ गई। बड़े भाई रामू ने कहा कि “अब तो भलाई का जमाना ही नहीं रह गया।”

जिसके जवाब में छोटे भाई दीनू ने कहा कि “ऐसा नहीं है! आज भी इस दुनिया से भलाई ख़त्म नहीं हुई है और आज भी भले लोग मौजूद हैं।” इस एक बात को लेकर दोनों भाई घंटों झगड़ा करते रहे और जब कोई समाधान नहीं निकला तो बड़े भाई ने एक शर्त रख दी।

उसने कहा कि “अगर मैंने ये साबित कर दिया कि इस दुनियां में भलाई का जमाना नहीं है, तो तुम्हारे पास जो कुछ भी है वो आज से मेरा हो जाएगा और अगर मैं गलत साबित हुआ तो मेरा सारा धन तुम रख लेना।” फिर क्या था? दोनों भाई नगर में निकल पड़े और सबसे यही सवाल किया कि “क्या भलाई का जमाना है या नहीं?” नगर के प्रत्येक व्यक्ति ने जवाब में कहा कि “नहीं भैया ! भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा।”

नगर वालों के इस बात ने छोटे भाई दीनू को गलत साबित कर दिया। दीनू शर्त हार गया और शर्त के नियम के अनुसार…उसे अपना सारा धन से लेकर खेत तक सब अपने बड़े भाई रामू को देना पड़ा। बेचारा दीनू पहले से बहुत गरीब था और खेत के चले जाने से उसकी बीवी-बच्चे भूखे मरने लगे। जब दीनू का परिवार एक-एक अनाज के लिए तरसने लगा,तो उसने अपने बड़े भाई रामू से मदद मांगने का निश्चय किया।

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दीनू अपने भाई रामू के घर गया और उसने कहा…”भैया घर में अन्न का एक दाना तक नहीं है। बीवी बच्चे भूखे मर रहे हैं,क्या मुझे थोड़ा अनाज दे दोगे?” अपने छोटे भाई की इस हालत पर,रामू को बिल्कुल भी दया नहीं आई और उसने कहा…”मैं कोई भी चीज मुफ्त में नहीं देता।

अगर आनाज चाहिए,तो तुम्हे कुछ देना होगा।” यह सुनकर दीनू ने कहा “मैं गरीब आदमी भला तुम्हे क्या दे सकता हूँ?” जिस पर बड़े भाई ने कहा, अगर कुछ नहीं है देने के लिए “तो अपनी आँखें ही दे दो।” बेरहम रामू ने अन्न के बदले,अपने छोटे भाई की आँखें निकलवा लीं और बिचारा दीनू अपने बीवी-बच्चों का पेट भरने के लिए अँधा हो गया।

दीनू की इस हालत को देखकर उसके बीवी-बच्चों का रो रो कर बुरा हाल हो गया। लेकिन बहुत जल्द उसके घर का अनाज फिर से खत्म हो गया और इस बार दीनू ने अपने बड़े भाई के पास ना जाने का फैसला किया। क्योंकि इस बार रामू,अन्न के बदले ना जाने शरीर का कौन सा अंग मांग ले? अगर इस बार कहीं उसने हाँथ-पाँव मांग लिए,तो उसका परिवार और तकलीफ में आ जाएगा।

इसलिए दीनू ने अब भीख मांगने का फैसला किया और रोज एक स्थान पर बैठ कर भीख मांगने लगा। समय बीतता गया,दीनू दिन भर भीख मांगता और उसकी बीवी रात को लेने आ जाती। लेकिन एक रात दीनू की बीवी उसे लेने नहीं आई और दीनू ने खुद घर जाने का फैसला किया।

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लेकिन अँधा होने के कारण,दीनू रास्ता भटक गया और एक सुनसान जंगल में चला गया। अधिक थकावट के कारण,वो एक पेड़ की ओट में बैठ गया। लेकिन वो पेड़ कोई मामूली पेड़ नहीं था। वो एक भूतिया पेड़ था,जहाँ रात के समय सारे भूत इकठ्ठा होकर अपने काम की चर्चा किया करते थे।

उस समय भी भूत अपने काम की चर्चा कर रहे थे। तभी एक भूत ने कहा “मैंने दो भाइयों को आपस में लड़वा कर, छोटे भाई को अँधा करवा दिया। लेकिन वो ये नहीं जानता कि,अगर वे इस पेड़ की जड़ की मिट्टी अपनी आँखों पर मल ले तो उसकी आँखे वापस आ जाएंगी।”

तभी दूसरे भूत ने कहा “ये तो कुछ भी नहीं है,मैंने तो इस नगर के सेठ की बेटी को गूंगा कर दिया। लेकिन वे इस बात को नहीं जानते कि,अगर वो सेठ की बेटी इस पेड़ की जड़ का रस पी ले तो उसकी आवाज ठीक हो जाएगी। ये सारी बातें दीनू वहीं निचे से सुन रहा था और अगली सुबह का इंतजार कर रहा था।

जब सुबह हुई तो सबसे पहले दीनू ने उस पेड़ की जड़ की मिट्टी को अपनी आँखों पर लगा लिया और उसकी आँखें वापस आ गईं। इसके बाद दीनू सीधा नगर के सेठ के पास गया और उसने सेठ से कहा कि “अगर मैं आपकी बेटी की आवाज ठीक कर दूँ,तो आप मुझे क्या दोगे?”

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जिसके जवाब में सेठ ने कहा “अगर तुमने ऐसा कर दिया,तो मैं तुम्हे जमीन,खेत,सोना और खूब सारा पैसा दूंगा।” फिर क्या था? दीनू सेठ की बेटी को उसी पेड़ के जड़ का रस पीला देता है और सेठ की बेटी अब बोलने लगती है। सेठ अपने किए वादे के मुताबिक दीनू को मालामाल कर देता है।

इसके बाद दीनू के दिन बदल जाते हैं, वो अपने परिवार के साथ रईसी से रहने लगता है और उसके घर में नौकर-चाकर भी काम करने लगते हैं।

एक दिन उसका बड़ा भाई रामू,धन की लालच में उससे मिलने आता है और उससे इस चमत्कार का कारण पूछता है।बिचारा भोला-भाला दीनू उसे सारी बात बता देता है और एक रात रामू भी उसी पेड़ के निचे जाकर बैठ जाता है।

तभी एक भूत कहता है कि “उस दीनू की आँखें ठीक हो गईं और उस सेठ की बेटी की आवाज भी वापस आ गईं,लगता है कोई जासूस यहाँ छुप कर हमारी बाते सुनता है।” तभी उन भूतों की नजर पेड़ के निचे बैठे रामू पर जाती है और वे उसे जासूस समझ कर मार देते हैं।

शिक्षा (Moral of Story)

इस कर भला तो हो भला (Kar Bhala To Ho Bhala) कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि,बुराई का अंजाम हमेशा बुरा हीं होता है। वहीं भलाई के राह पर चलने वाले को भले हीं चुनौतियों का सामना क्यों ना करना पड़े? लेकिन अंत में उनके साथ सब कुछ अच्छा हीं होता है। इसीलिए तो कहते हैं “कर भला तो हो भला”

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