नीली आँखों वाली परी की कहानी – Neeli Aankhon Wali Pari Ki Kahani

Pariyon Ki Kahani: बचपन में हम सब ने दादी, नानी से अनेको कहानियां सुनी है। जिसमें से परियों की कहानियां (नीली आँखों वाली परी की कहानी) Neeli Aankhon Wali Pari Ki Kahani एक ऐसी कहानी थी, जो लगभग सभी को पसंद आती थी।

Pari Ki Kahani
Pari Katha

तो यहां हम आपको वहीं Pariyon Ki Kahani (नीली आँखों वाली परी की कहानी) बताने वाले है। तो इस Pari Ki Kahani को अंत तक जरूर पढ़ें।

नीली आँखों वाली परी की कहानी – Pariyon Ki Kahani

बहुत समय से सालों पहले भानिया राज्य में कर्ण राजा का शासन चलता था।  राजा अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था राजा का दिल बहुत साफ़ था। वह हर त्योहार के दिन लोगों को दान देते थे। इस साल भी एक त्योहर के अवसर पर राजमहल में दान लेने वालों की भीड़ लग गई। राजा ने सबको भर-भरकर दान दिया।

अंत में कमर को झुकाते हुए एक महिला राजा के पास दान लेने के लिए पहुँची। लेकिन, तबतक राजा के पास दान देने के लिए कुछ भी नहीं बचा। राजा ने तुरंत अपने गले से हीरे का हार निकालकर उस महिला को दे दिया। वह महिला राजा के सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद देकर चली गई।

अगले दिन राजा अपने बगीचे में बैठकर सोच रहे थे कि मेरे जीवन में एक पुत्र की कमी है। भगवान ने मुझे सबकुछ दिया लेकिन पुत्र सुख पता नहीं क्यों नहीं दिया? तभी राजा के गोद में आकर एक आम गिरा। राजा इधर-उधर देखने लगे। उनके मन में हुआ कि आखिर यह आम मेरी गोद में आया कैसे ?और कहाँ से ?

तभी कुछ देर बाद उन्हें बहुत-सारी परियाँ दिखीं। उन सभी परियों में से एक नीली आँखों वाली परी राजा के सामने आई और बोलने लगी कि इस आम को अपनी पत्नी को देना। यह आम तुम्हें पुत्र रत्न देगा। इसे खाने के नौ महीने बाद ही तुम्हारी पत्नी माँ बन जाएगी।

वैसे तुम्हारे भाग्य में पुत्र सुख तो नहीं है, लेकिन तुम दिल के साफ़ हो और बहुत दानी हो, इसलिए तुम्हें यह सुख मिला है। बस यह सुख तुम्हें सिर्फ 21 साल तक मिलेगा। जैसे ही तुम्हारे बेटे की शादी होगी, उसकी मौत हो जाएगी।

राजा ने दुखी मन से नीली आँखों वाली परी से पूछा, “क्या इसका कोई उपाय नहीं है?”

परी ने कहा, “राजन! कल मैं कमर झुकाते हुए एक साधारण महिला के रूप में तुम्हारे दरबार में दान लेने के लिए आई थी। देखो, जो माला तुमने मुझे दी थी, वो मेरे गले में है। तुम्हारे इसी कर्म और दूसरों की मदद करने की भावना के कारण मैं तुम्हें पुत्र का आशीर्वाद देने के लिए आई हूँ।”

“लेकिन, तुम्हारा बेटा 21 साल से ज्यादा नहीं जी पाएगा। फिर भी तुम उसकी मौत होते ही उसे एक संदूक में डाल देना। उसके बाद संदूक में चार दही के घड़े रखना और बीच जंगल में लाकर छोड़ देना।” इतना कहकर नीली आँखों वाली परी वहाँ से ओझल हो गई।

राजा ने महल जाकर सारी बात अपनी पत्नी मैत्री को बता दी और राजा ने अपनी पत्नी मैत्री को आम खाने के लिए दिया। राजा की पत्नी ने आम खाने के ठीक नौ महीने के बाद एक पुत्र को जन्म दिया। बेटा होने की खुशी में राजा ने बहुत बड़ा जश्न रखा। जश्न के बाद बेटे का नाम देव रखा गया।

दिन बीतते गए और होते-होते राजकुमार देव की उम्र 21 साल की हो गई। उसके विवाह के लिए प्रस्ताव आने लगे। राजा ने एक बुद्धिमान लड़की वत्सला से अपने बेटे की शादी करा दी। शादी के कुछ ही दिनों के बाद नीली आँखों वाली परी की बात सच हो गई और राजा का बेटा देव मर गया।

राजा और रानी नीली आँखों वाली परी की बात भूल गए थे। जब देव के अंतिम संस्कार के लिए राजा लोगों के साथ श्मशान की ओर बढ़ने लगे, तो राजा को परी की बात याद आ गई। तुरंत राजा ने अपने सिपायिओं को  एक बड़ा-सा संदूक और चार दही के घड़े लाने के लिए कहा।

संदूक आते ही राजा ने भारी मन से अपने बेटे को उसमें डाला और दही के चार घड़े भी रख दिए। उसके बाद राजा ने अपने सैनिकों की मदद से उस संदूक को घने जंगल के बीच में रख दिया। वहाँ से लौटने के बाद राजा का मन किसी काम में नहीं लगा। कुछ समय बाद देव की पत्नी अपने मायके चली गई।

समय बीतता गया और देव की मृत्यु को एक साल हो गया। देव की पत्नी वत्सला के घर एक बूढ़ा आदमी खाना मांगने के लिए पहुँचा। उसने बड़े प्यार से उसे खाना खिलाया। खाना खाने के बाद उस भिखारी ने अपना हाथ धोने के लिए दूसरे हाथ की मुट्ठी खोली। तभी वत्सला ने उस मुट्ठी में अपने पति देव की सोने की चेन देखी।

वत्सला ने तुरंत भिखारी से पूछा, “आपको यह चेन कहाँ से मिली? यह मेरे पति की चेन है, जिन्हें संदूक में बंद करके जंगल के बीच में रखा गया था।” भिखारी ने डरते हुए कहा, “हाँ, मैंने यह चेन उसी संदूक से निकाली है।” वत्सला ने कहा, “आप डरिए मत! मैं सिर्फ उस जंगल तक जाना चाहती हूँ, जहाँ मेरे पति का संदूक रखा है।”

भिखारी ने कहा, “वह भयानक जंगल है, मैं आपको वहाँ तक नहीं लेकर जा पाऊंगा। हाँ, आप चाहो, तो मैं आपको उस संदूक से थोड़ी दूर ले जाकर छोड़ सकता हूँ।”

वत्सला तेज़ी से भिखारी के साथ जंगल तक पहुँची। घने जंगल से पहले ही भिखारी वहाँ से चला गया। फिर वत्सला अकेले अपने पति के संदूक को ढूंढने के लिए निकल पड़ी। वहाँ जाकर उसने अजीब-सी चीज़ें देखीं। उस संदूक के पास बहुत सारी परियाँ थीं। वत्सला पेड़ के पीछे छुपकर उन्हें देखने लगी।

वत्सला ने देखा कि सारी परियों के बीच से एक नीली आँखों वाली परी आई और उसने संदूक में एक लकड़ी देव के मृत शरीर के सिर के पास और एक पैर के पास रखी। तभी देव संदूक से बाहर निकल आया। परियों ने देव को मिठाई खिलाई और दोबारा संदूक के अंदर डालकर लकड़ियों की स्थिति बदल दी।

रोज़ रात को नीली आँखों वाली परी इसी तरह से देव को संदूक से बाहर निकालती और फिर उसी में भेज देती थी। वत्सला डरते हुए उसी जंगल में फल खाकर तीन से चार दिन तक यह सब देखती रही।

एक दिन वत्सला ने भी संदूक खोलकर नीली आँखों वाली परी की तरह ही लकड़ी की स्थिति को बदला। तभी देव संदूक से बाहर निकल आया। देव ने जैसे ही अपनी पत्नी को देखा, वह हैरान हो गया।

देव कुछ बोल ही रहा था कि अचानक वत्सला बोल पड़ी, “मैं आपको इस जंगल में इस स्थिति में रहने नहीं दूंगी। आपको मेरे साथ चलना होगा।”

देव ने वत्सला को समझाते हुए कहा, “मैं नीली आँखों वाली परी की वजह से ही इस दुनिया में आया हूँ। मैं उनकी आज्ञा के बिना कहीं नहीं जा सकता। तुम मेरे संदूक में रखा हुआ एक घड़ा अपने साथ लेकर मेरे राज्य चली जाओ। वहाँ छुपकर रहना। तुम्हें नौ महीने बाद एक पुत्र होगा, तब मैं तुमसे मिलने आऊंगा। अब तुम लकड़ी की स्थिति बदलकर मुझे पहले की तरह संदूक में जाने दो।”

वत्सला ने अपने पति के कहे अनुसार ही किया। सबसे पहले संदूक में पति को भेजा। फिर वह दही का एक घड़ा लेकर रूप बदलने के बाद राजमहल पहुँची और रानी को चिट्ठी भेजकर रहने के लिए जगह माँगी। रानी ने दया करके उसे राजमहल के पास ही एक कमरा रहने के लिए दिया। जब रानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो रानी उसका ख्याल भी रखने लगी।

जब वत्सला ने बच्चे को जन्म दे दिया, तो देव उससे मिलने के लिए आया। उस समय रानी पास से ही गुज़र रही थी, उन्होंने तुरंत अपने बेटे को पहचान लिया। रानी सीधे देव के पास पहुँची और पूछने लगी यह तुम्हारी पत्नी है? यह तुम्हारा पुत्र है? तुम जीवित हो? अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगी।

देव ने कहा, “माँ, मैं आपके साथ नहीं आ सकता हूँ। इसका एक ही उपाय है। आपको अपने पोते के लिए एक उत्सव रखना होगा। आप उसमें सारी परियों को बुलाइए। जब परियाँ आ जाएं, तो नीली आँखों वाली परी का बाज़ूबंद किसी तरह निकाल कर जला देना। उसके बाद नीली आँखों वाली परी से मेरे जीवन का वरदान माँग लेना।”

इतना कहकर राजकुमार देव वहाँ से चला गया। उसकी माँ ने दुखी मन से उसे विदा किया। कुछ ही दिनों में रानी मैत्री ने अपने बेटे देव के कहे अनुसार जश्न रखा और सारी परियों को भी बुलाया। सभी जश्न में डूबे हुए थे, तभी रानी मैत्री का पोता रोने लगा। रोते बच्चे को देखकर नीली आँखों वाली परी ने उसे अपनी गोद में उठा लिया।

तभी रानी मैत्री ने परी से कहा, “देखिए न, इसे आपका बाज़ूबंद पसंद आ गया है। तभी तो आपके पास आते ही इसने रोना बंद कर दिया। क्या आप कुछ देर के लिए अपना बाज़ूबंद इसे खेलने के लिए दे देंगी?”

परी ने तुरंत अपना बाज़ूबंद उस बच्चे को दे दिया। रानी मैत्री को इसी मौके का इंतज़ार था। उसने सबकी नज़रें बचाते हुए उस बाज़ूबंद को आग में डाल दिया।

नीली आँखों वाली परी ने अपने जलते बाज़ूबंद को देखकर रानी मैत्री ने पूछा, “आपने यह क्या किया? अब हम आपके बेटे देव को अपने पास उस जंगल में नहीं रख पाएंगे।”

यह सुनते ही रानी मैत्री ने रोते हुए परी से प्रार्थना की। उन्होंने कहा, “आपकी कृपा से मुझे बेटा हुआ था। अब आपको ही कृपा करके मेरा बेटा लौटाना होगा। मैं आपसे अपने बेटे देव की भीख माँगती हूँ।”

नीली आँखों वाली परी को माँ का प्यार देखकर दया आ गई और उन्हें आशीर्वाद दे दिया। परी के आशीर्वाद से राजकुमार देव संदूक से निकलकर घर लौट आया। राजकुमार अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।

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