गणेश जी और सवारी मूषक की कहानी – Ganesh Ji ki Kahani

Ganesh Ji ki Kahani दोस्तों, बचपन में हम सब ने दादी, नानी से अनेको कहानियां सुनी है। जिसमें से धार्मिक कहानियाँ (गणेश जी और सवारी मूषक की कहानी) एक ऐसी कहानी (Hindi Kahani) थी, जो लगभग सभी को पसंद आती थी।

रिद्धि-सिद्धि, बुद्धि और ज्ञान के देवता श्री गणेश, जिन्हें देवों में प्रथम पूजनीय होने का स्थान प्राप्त हैं। वो चाहते तो अपने लिए विशाल काय शक्तिशाली, किसी भी अन्य जानवर और पशु को अपना वाहन चुन सकते थे, पर क्या कभी हमने सोचा की, श्री गणेश ने मूषक को ही अपना वाहन क्यों चुना है?

तो यहां हम आपको वहीं Ganesh ji ki Katha (गणेश जी और सवारी मूषक की कथा) बताने वाले है। तो इस Story of Ganesh ji and Mushak को अंत तक जरूर पढ़ें।

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Ganesh Ji ki Kahani

गणेश जी और सवारी मूषक की कहानी – Ganesh Ji ki Kahani

एक समय की बात है, इन्द्र देव की सभा में, एक जरूरी विषय पर चर्चा हो रही थी, सबका ध्यान इंद्र देव की बातों पर था, पर उस सभा में, क्रोंच नाम का एक गंधर्व भी मौजूद था, जो बार बार सभा को खंडित करने की चेष्टा कर रहा था, किन्तु बाकी देव उस पर ध्यान नहीं दे रहे थे, किन्तु उसकी उदंडता बढ़ती ही चली गई, और उसका पैर जाकर के ऋषि वामदेव को लग गया।

इसके पश्चात भी क्रोंच ने वामदेव से माफी नहीं मांगी, और हँसने लगा। इस पर क्रोद्धित होकर, ऋषि वामदेव ने, उसे श्राप देकर कहा कि, तुम्हारी उदंडता एक मूषक की भांति है, इसलिए आज से तुम एक मूषक बनकर ही रहोगे, क्यूंकि वो एक गंधर्व था और श्राप के कारण वह एक विशाल काय मूषक में परिवर्तित हो गया।

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अब उसने मूषक की ही भांति सबको परेशान करना शुरू कर दिया। उसने पृथ्वी लोक पर कई सारे आश्रमों को तहस नहस कर दिया, कई सारे ग्रंथों को कुचल दिया, और काफी हाहाकार मचा दिया था। उसी समय, श्री गणेश ऋषि पराशर के आश्रम में पहुँचे हुए थे, मूषकासुर ने ऋषि पराशर के आश्रम को भी हानि पहुँचाना शुरू कर दिया, वो सारे आश्रम को तहस नहस करने पर तुला था, उसे घमंड आ गया था, कि अब उसे कोई नहीं हरा सकता।

ऋषि पराशर ने श्री गणेश से प्राथना की, वे इस मूषकासुर से इस आश्रम की रक्षा करें, श्री गणेश जब मूषकासुर के पास पहुँचे तो उन्होंने सबसे पहले उसे, धैर्य के साथ समझाया, किन्तु वो नहीं माना।

फिर श्री गणेश ने उसे, लालच देने की कोशिश की, और कहा कि, अगर तुम्हे कोई वरदान चाहिए तो मुझसे मांगो। पर घमंड वश आकर मूषकासुर ने श्री गणेश से कहा कि, तुम हाथी के सर वाले, मुझे क्या वरदान में दे सकते हो?? अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो तुम मुझसे मांग लो, श्री गणेश बुद्धि के देवता थे, उन्होंने मूषकासुर से कहा कि, ठीक है, फिर मुझे तुम्हारी सवारी करनी है।

मूषकासुर जोर जोर से हँसने लगा, और कहने लगा कि बस इतनी सी बात, तुम इतने से तो हो, मैं इतना विशाल काय मूषक, आओ मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें सवारी करवाता हूँ, पर मूषकासुर को कहाँ पता था कि वो श्री गणेश हैं, जिनके पास अनगिनत हाथियों का बल है। श्री गणेश ने अपना वजन इतना बढ़ा लिया कि मूषकासुर की पीठ पर बैठने के बाद वो वहां से हिल भी नहीं पा रहा था, उसने अपना सारा जोर लगा लिया, किन्तु वो एक कदम भी नहीं चल पा रहा था।

मूषकासुर को अहसास हुआ कि उसने घमंड वश में आकर अपनी मौत को ही आमंत्रित कर लिया है, इसलिए उसने श्री गणेश से माफी मांगी, और क्षमा करने को कहा। श्री गणेश भी उसकी पीठ से उतर गए, और हँसने लगे। मूषकासुर ने गणेश जी से माफी मांगी, श्री गणेश ने मूषकासुर से कहा कि आज के बाद तुम मेरी सवारी बनोगे, मूषकासुर हर्षित होकर श्री गणेश को देखने लगा और बोला, आप एक मूषक को अपनी सवारी बनाएंगे प्रभु??

श्री गणेश ने कहा कि वो संसार को यह ज्ञान देना चाहते हैं कि किसी को भी कभी कम नहीं समझना चाहिए, हमारे गुण हमारी पहचान होते हैं, ना कि हमारा बाहरी शरीर, बस उस दिन से मूषक राज बन गए, हमारे प्रिय श्री गणेश जी के वाहन, तब से जहाँ जहाँ गणेश जी वहाँ वहाँ, मूषक राज।

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