बंदर और मगरमच्छ की कहानी – Bandar aur Magarmach ki Kahani

Monkey and Crocodile Story – यहां हम आपको बंदर और मगरमच्छ की कहानी (Bandar aur Magarmach ki Kahani) बताने वाले है। तो इस मगरमच्छ और बंदर की कहानी (Crocodile and Monkey Story) को अंत तक जरूर पढ़ें।

Monkey and Crocodile Story
Monkey and Crocodile

मगरमच्छ और बंदर की कहानी – Monkey and Crocodile Story

बहुत समय पहले की बात है एक बार एक जंगल में झील के किनारे जामुन का एक पेड़ था. ऋतु आने पर उसमें बड़े ही मीठे और रसीले जामुन लगा करते थे. जामुन का वह पेड़ ‘रक्तमुख’ नामक बंदर का घर था. जब भी पेड़ पर जामुन लगते, तो वह ख़ूब मज़े लेकर उन्हें खाया करता था. उसका जीवन सुखमय था.

एक दिन एक मगरमच्छ झील में तैरता-तैरता जामुन के उसी पेड़ के नीचे आ गया, जिस पर बंदर रहा करता था. बंदर ने उसे देखा, तो उसके लिए कुछ जामुन तोड़कर नीचे गिरा दिए. मगरमच्छ भूखा था. जामुन खाकर उसकी भूख मिट गई.

वह बंदर से बोला, “मैं बहुत भूखा था मित्र. तुम्हारे दिए जामुन ने मेरी भूख शांत कर दी. तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद.”

तब बंदर बोला,“जब मित्र कहा है, तो फिर धन्यवाद की क्या बात है? तुम यहाँ रोज़ आ जाया करो. ये पेड़ तो जामुनों से लदा हुआ है. हम दोनों साथ में जामुनों का स्वाद लिया करेंगे.” बंदर ने मैत्रीभाव से मगरमच्छ से कहा.

उस दिन से बंदर और मगरमच्छ में अच्छी मित्रता हो गई. मगरमच्छ रोज़ झील किनारे आता और बंदर के दिए जामुन खाते हुए उससे ढेर सारी बातें किया करता. बंदर मित्र के रूप में मगरमच्छ को पाकर बहुत ख़ुश था.      

एक दिन दोनों में अपने-अपने परिवार के बारे में बातें चली, तो बंदर बोला, “मित्र, परिवार के नाम पर मेरा कोई नहीं है. मैं इस दुनिया में अकेला हूँ. किंतु तुमसे मित्रता के बाद से मेरे जीवन का अकेलापन चला गया. मैं भगवान का बहुत आभारी हूँ कि उसने मित्र के रूप में तुम्हें मेरे जीवन में भेजा.”

मगरमच्छ बोला, “मैं भी तुम्हें मित्र के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हूँ. लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ. मेरी पत्नि है. झील के पार हम दोनों साथ रहते हैं.”

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“अरे ऐसी बात थी, तो पहले क्यों नहीं बताया?बंदर बोला – मैं उनके लिए भी जामुन भेजता.”  और उस दिन बंदर ने मगरमच्छ की पत्नि के लिए भी जामुन भिजवाए.

घर पहुँचकर जब मगरमच्छ ने अपनी पत्नि को बंदर के भेजे जामुन दिए, तो उसने पूछा, “नाथ, तुम इतने मीठे जामुन कहाँ से लेकर आये हो?”

 मगरमच्छ बोला.-“ये जामुन मुझे मेरे मित्र बंदर ने दिए हैं, जो झील के पार जामुन के पेड़ पर रहता है.”

मगरमच्छ  की पत्नी बोली-“बंदर और मगरमच्छ की मित्रता! कैसी बात कर रहे हो नाथ? बंदर और मगरमच्छ भी भला कभी मित्र होते हैं? वो तो हमारा आहार हैं.फिर मगरमच्छ की पत्नि बोली.- जामुन के स्थान पर तुम उस बंदर को मारकर ले आते, तो हम मिलकर उसके मांस का स्वाद लेते.” 

“ख़बरदार, जो आइंदा कभी ऐसी बात की. बंदर मेरा मित्र है. वह मुझे रोज़ मीठे जामुन खिलाता है. मैं कभी उसका अहित नहीं कर सकता.” मगरमच्छ ने अपनी पत्नि को झिड़क दिया और वह मन मसोसकर रह गई.

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इधर बंदर और मगरमच्छ की मित्रता पूर्वव्रत रही. दोनों रोज़ मिलते रहे और बातें करते हुए जामुन खाते रहते और  बंदर अब मगरमच्छ की पत्नि के लिए भी जामुन भेजने लगा.

मगरमच्छ की पत्नि जब भी जामुन खाती, तो सोचती कि जो बंदर रोज़ इतने मीठे जामुन खाता है, उसका कलेजा कितना मीठा होगा? काश, मुझे उसका कलेजा खाने को मिल जाये! लेकिन डर के मारे वह अपने पति से कुछ न कहती. लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, वैसे-वैसे उसके मन में बंदर का कलेजा खाने की लालसा बढ़ती गई.

वह अपने पति से सीधे-सीधे बंदर के कलेजे की मांग नहीं कर सकती थी. इसलिए उसने एक तरक़ीब निकाली. एक शाम जब मगरमच्छ बंदर से मिलकर वापस आया, तो देखा कि उसकी पत्नि निढाल होकर पड़ी है.

पूछने पर वह आँसू बहाते हुए बोली, “मेरी तबियत बहुत ख़राब है. लगता है, अब मैं नहीं बचूंगी. नाथ, मेरे बाद तुम अपना ख्याल रखना.”

मगरमच्छ अपनी पत्नि से बहुत प्रेम करता था. उससे उसकी वह हालत देखी नहीं जा रही थी. वह दु:खी होकर बोला, “प्रिये! ऐसा मत कहो. हम वैद्य के पास जायेंगे और तुम्हारा इलाज़ करवाएंगे.”

“मैं वैद्य के पास गई थी. लेकिन उसने मेरी बीमारी का जो इलाज़ बताया है, वह संभव नहीं है.”

“तुम बताओ तो सही, मैं तुम्हारा हर संभव इलाज करवाऊंगा.”

मगरमच्छ की पत्नि इसी मौके की तलाश में थी. वह बोली, “वैद्य ने कहा है कि मैं बंदर का कलेजा खाकर ठीक हो सकती हूँ. तुम मुझे बंदर का कलेजा ला दो.”

“ये तुम क्या कह रही हो? मैं तुमसे कह चुका हूँ कि बंदर मेरा मित्र है. मैं उसक साथ धोखा नहीं कर सकता.” मगरमच्छ अपनी पत्नि की बात मानने को तैयार नहीं हुआ.

उसकी पत्नि रुठते हुए बोली.-“यदि ऐसी बात है, तो तुम मेरा मरा मुँह देखने को तैयार रहो.” 

मगरमच्छ दुविधा में पड़ गया. एक ओर मित्र था, तो दूसरी ओर पत्नि. अंत में उसने अपनी पत्नि के प्राण बचाने का निर्णय किया. दूसरे दिन वह सुबह-सुबह बंदर का कलेजा लाने चल पड़ा. उसकी पत्नि ख़ुशी से फूली नहीं समाई और उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगी.

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जब मगरमच्छ बंदर के पास पहुँचा, तो बंदर बोला, “मित्र, आज इतनी सुबह-सुबह. क्या बात है?”।

“मित्र, तुम्हारी भाभी तुमसे मिलने को लालायित है. वह रोज़ मुझसे शिकायत करती है कि मैं तुम्हारे दिए जामुन तो खा लेती हूँ. किंतु कभी तुम्हें घर बुलाकर तुम्हारा सत्कार नहीं करती आज उसने तुम्हें भोज पर आमंत्रित किया है. मैं सुबह-सुबह वही संदेशा लेकर आया हूँ.” मगरमच्छ ने झूठ कहा बंदर से ।

“मित्र, भाभी को मेरी ओर से धन्यवाद कहना. लेकिन मैं जमीन रहने वाला जीव हूँ और तुम लोग जल में रहने वाले जीव हो. मैं ये झील पार नहीं कर सकता. मैं कैसे तुम्हारे घर आ पाऊंगा?” बंदर ने अपनी समस्या बताई।

तभी मगरमच्छ के बोला-“मित्र! उसकी चिंता तुम मत करो. मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर अपने घर ले जाऊंगा.”।

बंदर तैयार हो गया और पेड़ से कूदकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया. मगरमच्छ झील में तैरने लगा. जब वे झील के बीचो-बीच पहुँचे, तो मगरमच्छ ने सोचा कि अब बंदर को वास्तविकता बताने में कोई समस्या नहीं है. यहाँ से वह वापस नहीं लौट सकता।

मगरमच्छ बंदर से बोला, “मित्र, भगवान का स्मरण कर लो. अब तुम्हारे जीवन की कुछ ही घड़ियाँ शेष हैं. मैं तुम्हें भोज पर नहीं, बल्कि मारने के लिए ले जा रहा हूँ.”।

ये सुनकर बंदर चकित होकर बोला, “मित्र, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम मुझे मारना चाहते हो. मैंने तो तुम्हें मित्र समझा, तुम्हें जामुन खिलाये और उसका प्रतिफल तुम मेरे प्राण लेकर दे रहे हो.”।

मगरमच्छ ने बंदर को सारी बात बताई और बोला, “मित्र, तुम्हारी भाभी के जीवन के लिए तुम्हारा कलेजा आवश्यक है. वह तुम्हारा कलेजा खाकर ही भली-चंगी हो पायेगी. आशा है कि तुम मेरे विवशता समझोगे.”।

बंदर को मगरमच्छ की पत्नि की चालाकी समझ में आ गई. उसे मगरमच्छ और उसकी पत्नि दोनों पर  बहुत क्रोध गया. किंतु वह समय क्रोध दिखाने का नहीं, बल्कि बुद्धि से काम लेने का था.

बंदर चतुर था. तुरंत उसके दिमाग में अपने प्राण बचाने का एक उपाय आ गया और वह मगरमच्छ से बोला, “मित्र तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि भाभी को मेरा कलेजा खाना है. हम बंदर लोग अपना कलेजा पेड़ की कोटर में संभाल कर रखते हैं. मैंने भी जामुन के पेड़ की कोटर में अपना कलेजा रखा हुआ है. अब तुम मुझे भाभी के पास लेकर भी जाओगे, तो वह मेरा कलेजा नहीं खा पायेगी.”।

“यदि ऐसी बात है, तो मैं तुम्हें वापस पेड़ के पास ले चलता हूँ. तुम मुझे अपना कलेजा दे देना. वो ले जाकर मैं अपनी पत्नि को दे दूंगा.” कहकर मगरमच्छ ने फ़ौरन अपनी दिशा बदल ली और वापस जामुन के पेड़ की ओर तैरने लगा।

जैसे ही मगरमच्छ झील के किनारे पहुँचा, बंदर छलांग मारकर जामुन के पेड़ पर चढ़ गया. नीचे से मगरमच्छ बोला, “मित्र! जल्दी से मुझे अपना कलेजा दे दो. तुम्हारी भाभी प्रतीक्षा कर रही होगी.”।

“मूर्ख! तुझे ये भी नहीं पता कि किसी भी प्राणी का कलेजा उसके शरीर में ही होता है. चल भाग जा यहाँ से. तुझ जैसे विश्वासघाती से मुझे कोई मित्रता नहीं रखनी.” बंदर मगरमच्छ से धिक्कारते हुए बोला।

मगरमच्छ बहुत लज्जित हुआ और सोचने लगा कि अपने मन का भेद कहकर मैंने गलती कर दी. वह पुनः बंदर का विश्वास पाने के उद्देश्य से बोला, “मित्र, मैं तो तुमसे हँसी-ठिठोली कर रहा था. तुम मेरी बातों को दिल पर मत लो. चलो घर चलो. तुम्हारी भाभी बांट जोह रही होगी.”।

“दुष्ट, मैं इतना भी मूर्ख नहीं कि अब तेरी बातों में आऊंगा. तुझ जैसा विश्वासघाती किसी की मित्रता बनने के योग्य नहीं है. चला जा यहाँ से और फिर कभी मत आना.” बंदर मगरमच्छ को दुत्कारते हुए बोला।

मगरमच्छ अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।और बहुत दुखी भी हुआ के वह अपनी पत्नी के लिए कलेजा नहीं ले जा सका।

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